Monday, April 10, 2017

डा.एनी बेसेंट , स्वामी विवेकानंद , महर्षि दयानंद सरस्वती , राजा राममोहन राय

Image may contain: 1 personImage may contain: 1 person
Image may contain: 1 person

Image may contain: 1 personभारतीय राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण काल-3💐॥सामाजिक आन्दोलन के सूत्रधार : राजा राममोहन राय‚
महर्षि दयानन्द और स्वामी विवेकानन्द॥
डा.एनी बेसेंट , स्वामी विवेकानंद ,  महर्षि दयानंद सरस्वती , राजा राममोहन राय 🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅






पुनर्जागरण काल के राष्ट्रवादी चिन्तक जानते थे कि अपनी अज्ञानता की चिरनिद्रा में सोए हुए भारतीयों की राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना है तो उन्हें पुनः भारत के गौरवशाली अतीत की ओर ले जाना होगा जिसके मानववादी मूल्यों में एक राष्ट्र को जागृत करने की क्षमता ही नहीं अपितु समूची मानवता को जगाने का भी सामर्थ्य है।
🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅
सन् 1857 का विद्रोह विफल हो जाने के बाद उन्नीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में भारतीय राष्ट्रवाद के दूसरे चरण की जो शुरुआत हुई उसे इतिहास जगत् में राष्ट्रीय पुनर्जागरण के काल के रूप में जाना जाता है। भारत में इस नवीन राष्ट्रवाद के जन्म के कारण जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन का संघर्ष प्रारम्भ हुआ वह विश्व में अपने आप में एक अनूठा अहिंसक आन्दोलन था जो कालान्तर में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में लड़ा गया किन्तु इसकी पृष्ठभूमि में तत्कालीन सामाजिक तथा धार्मिक आन्दोलनों की भी बहुत बड़ी भूमिका रही थी।
इतिहासकारों का मत है कि इस समय भारत का पुनर्जागरण मुख्यतः आध्यात्मिक था। धीरे धीरे इसने राष्ट्र के राजनीतिक उद्धार के आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। इस दूसरे चरण के आन्दोलन की खासियत थी कि भारत में राजनीतिक जागृति के साथ-साथ सामाजिक तथा धार्मिक जागृति का भी सूत्रपात हुआ। भारतीय राष्ट्रीय पुनर्जागरण के इस आन्दोलन का स्वरूप यूरोपीय देशों में हुई राष्ट्रीय जागृति के आन्दोलन से सर्वथा भिन्न था। ।9वीं शताब्दी में पश्चिमी राष्ट्रवाद से प्रभावित होकर भारत में भी आधुनिक राष्ट्रवाद का जो उदय हुआ उसके मुख्य सूत्रधार थे- राजा राममोहन राय‚ महर्षि दयानन्द सरस्वती‚ स्वामी विवेकानन्द‚ महर्षि अरविन्द‚ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक‚ महामना मदन मोहन मालवीय‚ बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय‚ महात्मा गांधी आदि राष्ट्रवादी विचारक। प्रारम्भिक दौर में इस नवोदित राष्ट्रवाद की प्रकृति अंग्रेजी शिक्षा-दीक्षा के कारण पश्चिमी स्वरूप की थी किन्तु जैसे-जैसे इसने राष्ट्रीय आन्दोलन की दिशा पकड़ी इसका स्वरूप भारतीय होता गया।
भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय व विकास की दृष्टि से 19 वीं शताब्दी में हुए सामाजिक तथा धार्मिक आन्दोलनों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। पिछले सैकड़ों वर्षों की पराधीनता के कारण भारतवासी अपने देश की स्वर्णिम परम्पराओं के इतिहास और उससे जुड़े बौद्धिक चिन्तन को भूला चुके थे जिसके कारण देश की सामाजिक तथा धार्मिक दशा पतन की ओर अग्रसर थी । धर्म के नाम पर समाज में अन्धविश्वास और कुप्रथाएँ पैदा हो गई थीं। इन आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलनों ने एक ओर जहां धर्म तथा समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया तो दूसरी ओर भारत में राष्ट्रीयता की चेतना पैदा करने में भी इन आन्दोलनों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस प्रकार के पुनर्जागरण आन्दोलनों मे ‘ब्रह्म समाज’, ‘आर्य समाज’, ‘रामकृष्ण मिशन’ एवं ‘थियोसोफिकल सोसायटी’ आदि संस्थाओं का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिनके प्रवर्तक क्रमशः राजा राममोहन राय, महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, डा. एनी बेसेन्ट आदि धर्म सुधारक रहे थे। इन सुधारकों ने भारतीयों में आत्मविश्वास जागृत किया, उन्हें भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा का ज्ञान कराया, तथा उन्हें अपनी संस्कृति की रक्षा करने के साथ साथ स्वदेशी चिंतन अपनाने की ओर भी प्रेरित किया। राजा राममोहन राय ने उपनिषदों को आधार बनाकर ‘ब्रह्मसमाज’ की स्थापना की तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेदों के तत्त्वज्ञान से प्रेरित होकर ‘आर्यसमाज’ की स्थापना का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। स्वामी विवेकानन्द ने ‘रामकृष्णमिशन’ के माध्यम से भारत के प्राचीन आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का जन-जन में प्रचार किया।
पुनर्जागरण काल के राष्ट्रवादी चिन्तक यह भली भांति जानते थे कि अपनी अज्ञानता की चिरनिद्रा में सोए हुए भारतीयों की राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना है तो उन्हें पुनः भारत के गौरवशाली अतीत की ओर ले जाना होगा जिसके मानववादी मूल्यों में एक राष्ट्र को जागृत करने की क्षमता ही नहीं अपितु समूची मानवता को जगाने का भी सामर्थ्य है। इन्हीं शिवसंकल्पों से 19वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवाद को एक नया जन्म और वैचारिक स्वरूप मिला।
💐 राजा राममोहन राय 💐
🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊
इन महान समाज सुधारकों में राजा राम मोहन राय को भारतीय राष्ट्रीयता का अग्रदूत कहा जाता है। उन्होंने समाज तथा धर्म में व्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु अगस्त 1828 ई. में ‘ब्रह्म समाज ’ की स्थापना की। राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा, छुआ-छूत जातिगत भेदभाव एवं मूर्ति पूजा आदि बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। उनके प्रयासों के कारण आधुनिक भारत का निर्माण सम्भव हो सका। इसलिए राम मोहन राय को आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा जाता है। राजा राममोहन राय ने भारतीयों के लिए राजनीतिक अधिकारों की माँग की। ब्रिटिश सरकार द्वारा 1823 ई. में प्रेस आर्डिनेन्स के द्वारा समाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। इस पर राजा राम मोहन राय ने इस आर्डिनेन्स का प्रबल विरोध किया और उसे रद्द करवाने का प्रयास किया इसके पश्चात् उन्होंने ज्यूरी एक्ट का आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया।
इतिहासकार आर.सी. मजुमदार के शब्दों में राजा राम मोहन राय “ पहले भारतीय थे जिन्होंने अपने देशवासियों की कठिनाई तथा शिकायतों को ब्रिटिश सरकार के सम्मुख प्रस्तुत किया और भारतीयों को संगठित होकर राजनीतिक आन्दोलन चलाने का मार्ग दिखलाया। उन्हें आधुनिक आन्दोलन का अग्रदूत होने का भी श्रेय दिया जा सकता है।”
💐 महर्षि दयानंद सरस्वती 💐
🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊
राजा राममोहन राय के बाद महर्षि दयानन्द सरस्वती एक महान समाज सुधारक हुए। उन्होंने 1875 ई. में मुंबई में ’आर्य समाज’ की नींव रखी। आर्य समाज एक साथ ही धार्मिक और राष्ट्रीय नवजागरण का आन्दोलन था इसने भारत के सनातन हिन्दू धर्म को नवजीवन प्रदान किया। स्वामी दयानन्द ने न केवल हिन्दू धर्म तथा समाज मे व्याप्त बुराइयों का विरोध किया अपितु अपने देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना का संचार भी किया। उन्होंने ईसाई धर्म की कमियों पर प्रकाश डाला और हिन्दुत्त्व के महत्व का प्रतिपादन कर भारतीयों का ध्यान अपनी सभ्यता व संस्कृति की ओर आकर्षित किया। उन्होंने लुप्त होती वैदिक धर्म की श्रेष्ठता को पुन: स्थापित किया और यह बताया कि हमारी वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीनतम एवं महत्त्वपूर्ण संस्कृति है। उनका मानना है कि वेद ज्ञान के भण्डार हैं और वैदिक धर्म के बल पर भारत विश्व में अपनी प्रतिष्ठा फिर से स्थापित कर जगद्गुरु का गौरव पुन: प्राप्त कर सकता है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपने ग्रन्थ ’सत्यार्थ प्रकाश’ में लिखा है कि “विदेशी राज्य चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों न हो, स्वदेशी राज्य की तुलना मे कभी भी अच्छा नहीं हो सकता।“ राजनीतिक स्वतन्त्रता की प्राप्ति स्वामी दयानन्द का मुख्य उद्देश्य था। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ‘स्वराज’ शब्द का प्रयोग किया और अपने देशवासियों को विदेशी माल के प्रयोग के स्थान पर स्वदेशी माल के प्रयोग की प्रेरणा दी। उन्होंने सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा स्वीकार किया।“ श्रीमती एनी बेसेन्ट ने लिखा है -”स्वामी दयानन्द सरस्वती पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले यह नारा दिया था, कि भारत भारतीयों के लिए है।“
💐 स्वामी विवेकानंद 💐
🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊
स्वामी विवेकानन्द ने ‘रामकृष्णमिशन’ के माध्यम से भारत के प्राचीन आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का जन-जन में प्रचार किया। विवेकानन्द भारत‚ भारतीयता और भारत की भूमि को अत्यन्त गौरव की दृष्टि से देखते थे और मानते थे कि यही वह देश है जहां तत्त्वज्ञान की किरण सबसे पहले फूटी और यहीं से वह विश्व के अन्य देशों तक पहुंची। उन्हें इस भारतराष्ट्र पर इसलिए भी गर्व था क्योंकि यह शताब्दियों से विदेशी आघात को सहकर भी अक्षय बना हुआ है। स्वामी विवेकानन्द ने यूरोप और अमेरिका में भारतीय संस्कृति का प्रचार किया। उन्होंने अंग्रेजों को यह बता दिया कि भारतीय संस्कृति पश्चिमी संस्कृति से महान है और वे बहुत कुछ भारतीय संस्कृति से सीख सकते हैं। उन्होंने भारत में सांस्कृतिक चेतना जागृत की तथा यहाँ के लोगों को सांस्कृतिक विजय प्राप्त करने की प्रेरणा दी।
स्वामी जी मानते थे कि सांस्कृतिक विजय की प्राप्ति के लिए भारत का स्वतन्त्र होना आवश्यक है। इस प्रकार उन्होंने भारतीयों की राजनीतिक स्वाधीनता का समर्थन किया जिससे राष्ट्रीय भावनाओं को असाधारण बल मिला। निवेदिता के अनुसार “स्वामी विवेकानन्द भारत का नाम लेकर जीते थे। वे मातृभूमि के अनन्य भक्त थे और उन्होंने भारतीय युवकों को उसकी वंदना करना सिखाया।”
💐 डा.एनी बेसेंट 💐
🎊🎊🎊🎊🎊🎊
भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में ‘थियोसोफिकल सोसाइटी’ की नेता डा. एनी बेसेन्ट का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। एनी बेसेन्ट एक विदेशी महिला थीं, किन्तु जब उन्हें भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता का ज्ञान हुआ तो उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वाधीनता की प्राप्ति हेतु आन्दोलन आरम्भ कर दिया। डा. एनी बेसेन्ट ने अपने 40 वर्ष भारत के सर्वांगीण विकास में व्यतीत किए। वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की सह संस्थापिका के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने महामना मदन मोहन मालवीय जी के अनुरोध पर काशी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए आवश्यक 'सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज' की स्थापना की। एनी बेसेंट ने भारत में पुनर्जागरण हेतु शिक्षा, नारी शिक्षा, आध्यात्मिक साहित्य के सृजन एवं हिन्दूधर्म के प्रसार, राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में विशेष योगदान दिया। महात्मा गांधी ने उन्हें वसंत देवी की उपाधि से विभूषित किया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि 19 वीं शताब्दी के सुधारकों ने भारतीय जनता में राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया । उन्होंने चिरनिंद्रा में सोए हुए देशवासियों को जगाया और ऐसा वातावरण तैयार किया जिसके कारण भारत स्वतन्त्रता के लक्ष्य को प्राप्त कर सका। सामाजिक धरातल पर देखा जाए तो ये आन्दोलन स्वरूप से कम या अधिक मात्रा में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और सामाजिक समानता के लिए संघर्षात्मक जन-आंदोलन थे पर उनका चरम लक्ष्य भारतीय राष्ट्रवाद की पुनर्स्थापना था।

No comments:

Post a Comment