अनुलोम विलोम प्राणायाम की विधि,अनुलोम विलोम प्राणायाम के लाभ,अनुलोम विलोम प्राणायाम में सावधानियां

प्राण का आयाम अर्थात नियंत्रण पूर्वक नियमन करते हुए विस्तार करना प्राणायाम है। इस सुष्ट्री के कारणीभूत दो मुख्य द्रव्य है - आकाश और प्राण। दोनों ही सर्वत्र व्याप्त है। प्राणवायु / Oxygen वह आंतरिक शक्ति है जो सकल जीवों में व्याप्त है। यह प्राणशक्ति जिसमे मन का भी समावेश होता है, उसे हम श्वास की माध्यम से प्राप्त करते है। इसी प्राणशक्ति का संचार नाड़ियों के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में होता है।
श्वास / Breathing, वायु का स्थूल रूप है और प्राण सूक्ष्म रूप। बाह्य वायु को भीतर लेना और बाहर छोड़ने का नाम श्वसन - क्रिया है। शरीर में श्वसन क्रिया जन्म से मृत्यु तक अविरत चलती रहती है। इसी श्वसन क्रिया का नियमन करना प्राणायाम कहलाता है।
श्वास / Breathing, वायु का स्थूल रूप है और प्राण सूक्ष्म रूप। बाह्य वायु को भीतर लेना और बाहर छोड़ने का नाम श्वसन - क्रिया है। शरीर में श्वसन क्रिया जन्म से मृत्यु तक अविरत चलती रहती है। इसी श्वसन क्रिया का नियमन करना प्राणायाम कहलाता है।
पातञ्जल योगसूत्र में प्राणायाम की व्याख्या कुछ इस तरह से दी गई है,
"
तस्मिन्नसंति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।"
अर्थात, श्वास और प्रश्वास की गति का विच्छेद प्राणायाम कहा जाता है।
आज हम प्राणायाम का आधार याने की अनुलोम विलोम प्राणायाम के बारें में जानेंगे। यह नए साधकों को प्राणायाम के लिए सक्षम व योग्य बनाने के लिए है। प्राणायाम सिखने की शुरुआत ही अनुलोम विलोम से की जाती है। फिर क्रमश: दूसरे प्रकारों का अभ्यास किया जाता है। अनुलोम विलोम को दीर्घ साधकर ही दीर्घ कुम्भक, कपालभाति, भस्त्रिका आदि किये जाते है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम को नाड़ीशोधक प्राणायाम भी कहा जाता है। अंगेजी में इसे Alternate Nostril Breathing नाम से भी जाना जाता हैं। इसमें साँस लेने की और छोड़ने की विधि बारबार की जाती है। अगर हर रोज इसे किया जाय तो सभी नाड़ियाँ स्वस्थ व निरोगी बनेगी। यह प्राणायाम हर उम्र का व्यक्ति कर सकता है।
आज हम प्राणायाम का आधार याने की अनुलोम विलोम प्राणायाम के बारें में जानेंगे। यह नए साधकों को प्राणायाम के लिए सक्षम व योग्य बनाने के लिए है। प्राणायाम सिखने की शुरुआत ही अनुलोम विलोम से की जाती है। फिर क्रमश: दूसरे प्रकारों का अभ्यास किया जाता है। अनुलोम विलोम को दीर्घ साधकर ही दीर्घ कुम्भक, कपालभाति, भस्त्रिका आदि किये जाते है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम को नाड़ीशोधक प्राणायाम भी कहा जाता है। अंगेजी में इसे Alternate Nostril Breathing नाम से भी जाना जाता हैं। इसमें साँस लेने की और छोड़ने की विधि बारबार की जाती है। अगर हर रोज इसे किया जाय तो सभी नाड़ियाँ स्वस्थ व निरोगी बनेगी। यह प्राणायाम हर उम्र का व्यक्ति कर सकता है।
अनुलोम विलोम प्राणायाम की विधि
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सर्वप्रथम साफ़ सुथरी जगह पर दरी या कम्बल बिछाकर सुखासन, वज्रासन, या पद्मासन में बैठ जाए।
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आँखों को बंद रखे।
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बाए हथेली को बाए घुटने पर रखे।
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प्रथम सांस बाहर निकालकर नासाग्र मुद्रा बनाये।
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दाएं हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बन्द करे।
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अंगूठे के पास वाली दोनों अंगुलियां तर्जनी और मध्यमा को भ्रूमध्य में रखे।
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अब बाए छिद्र से सांस खींचे इसके पश्चात बाए छिद्र को अनामिका अंगुली से बन्द करे और दाए छिद्र से अंगूठा हटाकर साँस छोड़े।
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अब इसी प्रक्रिया को बाए छिद्र से शुरुआत करके करे।
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सांस लेने में 2.5 सेकंड और सांस छोड़ने में 2.5 सेकंड इस तरह एक सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया 5 सेकण्ड की होती हैं।
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इस प्रकार यह एक आवर्तन हुआ ऐसे कम से कम 5 आवर्तनो से शुरू कर धीरे धीरे बढ़ाए।
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अंत में दाई हथेली भी घुटनों पर रख दोनों नासिकाओं से 5 बार सांस भरकर पूरी सांस बाहर निकाल दीजिये।
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प्रतिदिन 7 से 10 मिनिट करे। सामान्य अवस्था में 15 मिनिट तक और असाध्य रोगों में 30 मिनिट तक करे।
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इसकी विधि हम 2 तरीकों से कर सकते है। पहली विधि में साँस लेना है और छोड़ना है साँस रोकना नही है। सांस लेने व छोड़ने का समय बराबर रहना चाहिए। मन में गिनती करे। दूसरी विधि में अंतकुम्भक के साथ कर सकते है, मतलब समान अनुपात में सांस लेना और सांस को रोककर रखना , फिर दुगुने अनुपात में साँस छोड़ना।
अनुलोम विलोम प्राणायाम के लाभ
1. अनुलोम विलोम प्राणायाम से
72000 नाडियों की शुद्धि होती है इसीलिए इसे नाडीशुद्धि प्राणायाम भी कहते है।
2. इस प्राणायाम से हृदय को शक्ति मिलती है साथ ही कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है।
3. प्राणायाम में जब भी हम सांस भरते है शुद्ध वायु हमारे खून के दूषित पदार्थों को बाहर निकाल देती है, जिससे शुद्ध रक्त शरीर के सभी अंगो में जाकर पोषण देता है।
4. वात, पित्त, कफ के विकार दूर कर गठिया, जोड़ों का दर्द, सूजन आदि में राहत मिलती है।
5. इसके नियमित अभ्यास से नेत्रज्योति बढ़ती है।
6. रक्तसंचालन सही रहता है।
7. अनिद्रा में लाभदायक है।
8. तनाव घटाकर शान्ति प्रदान करता है।
9. माइग्रेन /
Migraine, हाई ब्लड प्रेशर, लो ब्लड प्रेशर, तनाव, क्रोध, कम स्मरणशक्ति से पीड़ित लोगो के लिए यह विशेष लाभकर है।
10. यह प्राणायाम मस्तिष्क के दोनों गोलार्धो में संतुलन के साथ ही विचारशक्ति और भावनाओं में समन्वय लाता है।
11. सकारात्मक सोच को बढ़ावा मिलता हैं।
अनुलोम विलोम प्राणायाम में सावधानियां
1. साँस लेने व छोड़ने की प्रक्रिया में आवाज नही होना चाहिए।
2. कमजोर एवम अनैमिया पीड़ित व्यक्ति में यह आसन करते वक्त दिक्कत हो सकती है अतः सावधानीपूर्वक करे।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम दिखने और करने में बेहद सामान्य लगता है पर जब आप इसका नियमित अभ्यास करने लगते है तब आपको इस सामान्य दिखनेवाले प्राणायाम से होने वाले दिव्य लाभ की अनुभूति होती हैं।
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